शालिनी गुप्ता, जबलपुर। मध्यप्रदेश के सबसे बड़े संभागीय लेडी एल्गिन अस्पताल इन दिनों अव्यवस्थाओ की भेट चढ़ गया है। जहां एक ओर सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर सुधार के दावे करती है, वहीं दूसरी ओर अस्पताल की जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। अस्पताल में भर्ती मरीजों को गर्मी के बेहद कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। गर्मी से राहत पाने के लिए वार्ड में लगे पंखे के नीचे मरीजों ने पलंग एक दूसरे से सटा कर रखे ताकि कुछ तो राहत मिल सके।
गर्मी में तड़पते मरीज, पंखे के नीचे खिसकाए बेड
गर्मी से परेशान मरीजों ने खुद ही इंतजाम करने शुरू कर दिए हैं। वार्ड में मरीजों ने दो बेड जोड़कर पंखों के नीचे खिसका लिए हैं ताकि थोड़ी राहत मिल सके। कुछ ने दीवार से सटे बिस्तरों को खिसकाकर हवा के लिए जगह बनाई है। वहीं, वार्डो में कूलर जरूर लगे हैं, पर वे चल रहे हैं या नहीं, इसकी किसी को परवाह नहीं। जिससे मरीजों को कठिनाई हो रही है।
बिस्तर के पास नहीं है डस्टबिन
वार्ड में भर्ती मरीजों के बिस्तर के पास डस्टबिन की बेहद आवश्यकता होती है लेकिन मरीज के पास से डस्टबिन ही नदारद हैं। मरीजों ने बताया कि डस्टबिन जहां हैं भी, वे मरीजों की पहुंच से दूर हैं जिससे तकलीफ का सामना करना पड़ता है। हालांकि ऐसे में मजबूरी में मरीज और उनके परिजन गैलरी या वार्ड के कोनों में कचरा फेंक रहे हैं।
पैसा दो तो होगा काम आसान, वरना अनदेखी
अस्पताल परिसर के विभिन्न जगहों पर लगे सूचना बोर्ड यह जरूर चेताते हैं कि किसी भी कर्मचारी को पैसे न दिए जाएं, पर मरीजों की माने तो अगर पैसे नहीं दिए जाते, तो वर्करों का व्यवहार ही बदल जाता है। कई मरीजों ने बताया कि अस्पताल में पैसे मांगने की सामान्य और बेहद आम हो चुकी हैं और इनकार करने पर स्टाफ का रवैया बेहद रूखा, असहयोगात्मक हो जाता है। अब जो खर्च पैसा देता है उसे सहयोग वरना अनदेखी!
प्रबंधन खामोश, मरीज लाचार
अव्यवस्थाओं के चलते भर्ती मरीजों और परिजनों की हालत लाचार सी हो चुकी है। अस्पताल प्रबंधन कि इस अनदेखी का शिकार अस्पताल में भर्ती मरीज हो रहे हैं। सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच की इस खाई को पाटने की जरूरत है, ताकि बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं वास्तव में जनता तक पहुंच सकें।
इनका कहना है
इस विषय में डॉ.रश्मि कुरारिया का कहना है कि कूलर में रोजाना पानी डाला जाता है, पंखे भी काम करते है लेकिन हर मरीज के पास कूलर नहीं लगाया जा सकता है।